ec7fa8a17afb4ed09668ca3cba134dcd Exploring the Rich Tapestry of Sanatana Dharma: A Comprehensive Guide to Hinduism

 सनातन धर्म के समृद्ध इतिहास की खोज: हिंदू धर्म के लिए एक व्यापक मार्गदर्शिका

  1. #SanatanaDharma
  1. #Hinduism
  1. #Spirituality
  1. #Culture
  1. #ReligiousArticles
  1. #HinduHeritage
  1. #DiverseWisdom
  1. #HinduPhilosophy
  1. #SacredTraditions
  1. #ExploringHinduism

  1. Demystifying Sanatana Dharma: Your Ultimate Guide to Hinduism"

  1. "Sanatana Dharma Unveiled: Navigating the Depths of Hinduism"

  1. "Hinduism Decoded: A Deep Dive into Sanatana Dharma"

  1. "Sanatana Dharma 101: Discovering the Essence of Hinduism"

  1. "Journey through Sanatana Dharma: Uncovering Hinduism's Wisdom"

  1. "The Heritage of Hinduism: Exploring Sanatana Dharma's Wisdom"

  1. "Sanatana Dharma Revealed: Ancient Wisdom for Modern Life"

  1. "The Power of Sanatana Dharma: Insights into Hinduism's Key Concepts"

  1. "Sacred Paths of Hinduism: Exploring Sanatana Dharma"

  1. "Hinduism Unraveled: Your Guide to the World of Sanatana Dharma"
  2. #सनातन धर्म को गहराई से समझना: हिन्दू धर्म के गहरे पर्व #सनातन धर्म का आदान-प्रदान #हिन्दू धर्म, जिसे अकेले "सनातन धर्म" भी कहा जाता है, एक अत्यधिक विशाल और गहरा धर्म है, जिसमें अनगिनत सिद्धांत, परंपराएँ और ग्रंथ हैं। यह एक विविधता से भरपूर धर्म है जिसमें आदित्या, शैव, शाक्त, वैष्णव, और अन्य अनेक पांथ हैं। #सनातन धर्म के मूल सिद्धांत सनातन धर्म का मूल महत्व धर्मिक और आध्यात्मिक तत्वों पर है। इसमें धर्म, कर्म, मोक्ष, और ध्यान जैसे महत्वपूर्ण सिद्धांत होते हैं, जो जीवन का मार्ग दर्शाते हैं। #सनातन धर्म की विविधता हिन्दू धर्म की विशेषता यह है कि यह अपने अनुयायियों को अन्य धर्मों के प्रति सहानुभूति और समरसता की ओर प्रोत्साहित करता है। इसमें भक्ति, ज्ञान, और कर्म मार्ग के अनुसरण के लिए अनेक रूप हैं। #सनातन धर्म के प्रमुख ग्रंथ सनातन धर्म के गहरे सिद्धांतों और ज्ञान को गुरूत्वाकर्षण से प्रस्तुत करने वाले कई महत्वपूर्ण ग्रंथ हैं। इनमें भगवद गीता, उपनिषद, रामायण, महाभारत और भगवत पुराण शामिल हैं। # सनातन धर्म का महत्व सनातन धर्म एक अनमोल धरोहर है जो मानव जीवन को सही दिशा में मार्गदर्शन करता है। यह धर्म आध्यात्मिकता, सद्गुण, और सहयोग के माध्यम से जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है। हिन्दू धर्म गहरे अर्थों में सनातन धर्म को समझने का एक माध्यम है। इसके गहरे सिद्धांतों और आदर्शों की समझ से हम अपने जीवन को सुखमय और सात्विक बना सकते हैं।
  3. हिन्दू धर्म, या सनातन धर्म, विश्व के सबसे प्राचीन और गहरे धर्मों में से एक है और इसके पीछे कई दिल को छूने वाले तथ्य छुपे हैं। 1. विविधता का आदान-प्रदान हिन्दू धर्म विविधता का प्रतीक है। यह धर्म अनगिनत देवी-देवताओं, पांथों, और सिद्धांतों के साथ है, जो विश्वास और समर्पण का सबले से आदरणीय प्रतीक है। 2. भारतीय धार्मिक ग्रंथ हिन्दू धर्म के महत्वपूर्ण ग्रंथ, जैसे कि भगवद गीता, उपनिषद, और महाभारत, धर्म, योग, और ज्ञान के महत्वपूर्ण सिद्धांतों का स्रोत हैं और दिलों को प्रेरित करते हैं। 3. ध्यान और आध्यात्मिकता हिन्दू धर्म में ध्यान और आध्यात्मिकता का महत्वपूर्ण स्थान है। योग और ध्यान के माध्यम से व्यक्ति अपने आत्मा की खोज में जुटता है और अंतरात्मा के साथ मेल करता है। 4. सद्गुण और सेवा हिन्दू धर्म ने सद्गुणों के महत्व को स्वीकार किया है, और सेवा एक महत्वपूर्ण आदर्श है। धर्मिक आचरण और समर्पण से व्यक्ति समाज के लिए सहयोगी बनता है। हिन्दू धर्म न सिर्फ एक धर्म है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक अनुभव का प्रतीक है, जो दिल को छूता है और सबको एक साथ जोड़ता है।


   

सनातन धर्म को गहराई से समझना: हिन्दू धर्म के गहरे पर्व

  सनातन धर्म का आदान-प्रदान

 हिन्दू धर्म, जिसे अकेले "सनातन धर्म" भी कहा जाता है, एक अत्यधिक विशाल और गहरा धर्म है, जिसमें अनगिनत सिद्धांत, परंपराएँ और ग्रंथ हैं। यह एक विविधता से भरपूर धर्म है जिसमें आदित्या, शैव, शाक्त, वैष्णव, और अन्य अनेक पांथ हैं।


  सनातन धर्म के मूल सिद्धांत

  सनातन धर्म का मूल महत्व धर्मिक और आध्यात्मिक तत्वों पर है। इसमें धर्म, कर्म, मोक्ष, और ध्यान जैसे महत्वपूर्ण सिद्धांत होते हैं, जो जीवन का मार्ग दर्शाते हैं।


  सनातन धर्म की विविधता

 हिन्दू धर्म की विशेषता यह है कि यह अपने अनुयायियों को अन्य धर्मों के प्रति सहानुभूति और समरसता की ओर प्रोत्साहित करता है। इसमें भक्ति, ज्ञान, और कर्म मार्ग के अनुसरण के लिए अनेक रूप हैं।


  सनातन धर्म के प्रमुख ग्रंथ

  सनातन धर्म के गहरे सिद्धांतों और ज्ञान को गुरूत्वाकर्षण से प्रस्तुत करने वाले कई महत्वपूर्ण ग्रंथ हैं। इनमें भगवद गीता, उपनिषद, रामायण, महाभारत और भगवत पुराण शामिल हैं।


  सनातन धर्म का महत्व

  सनातन धर्म एक अनमोल धरोहर है जो मानव जीवन को सही दिशा में मार्गदर्शन करता है। यह धर्म आध्यात्मिकता, सद्गुण, और सहयोग के माध्यम से जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है।


  समापन

 हिन्दू धर्म गहरे अर्थों में सनातन धर्म को समझने का एक माध्यम है। इसके गहरे सिद्धांतों और आदर्शों की समझ से हम अपने जीवन को सुखमय और सात्विक बना सकते हैं।

हिन्दू धर्म: दिल को छूने वाली बातें

हिन्दू धर्म: दिल को छूने वाली भावनाएँ

  

  हिन्दू धर्म, या सनातन धर्म, एक ऐसा अद्वितीय धर्म है जिसने अपने अनुयायियों के दिलों को छू लिया है। यह धर्म बहुत ही गहरा और विशाल है, और इसमें अनगिनत भावन

 धर्म: दिल को छूने वाली तथ्य

  

  हिन्दू धर्म, या सनातन धर्म, विश्व के सबसे प्राचीन और गहरे धर्मों में से एक है और इसके पीछे कई दिल को छूने वाले तथ्य छुपे हैं।


 1. विविधता का आदान-प्रदान

 हिन्दू धर्म विविधता का प्रतीक है। यह धर्म अनगिनत देवी-देवताओं, पांथों, और सिद्धांतों के साथ है, जो विश्वास और समर्पण का सबले से आदरणीय प्रतीक है।

 2. भारतीय धार्मिक ग्रंथ

 हिन्दू धर्म के महत्वपूर्ण ग्रंथ, जैसे कि भगवद गीता, उपनिषद, और महाभारत, धर्म, योग, और ज्ञान के महत्वपूर्ण सिद्धांतों का स्रोत हैं और दिलों को प्रेरित करते हैं।

  3. ध्यान और आध्यात्मिकता

  हिन्दू धर्म में ध्यान और आध्यात्मिकता का महत्वपूर्ण स्थान है। योग और ध्यान के माध्यम से व्यक्ति अपने आत्मा की खोज में जुटता है और अंतरात्मा के साथ मेल करता है।


  4. सद्गुण और सेवा

 हिन्दू धर्म ने सद्गुणों के महत्व को स्वीकार किया है, और सेवा एक महत्वपूर्ण आदर्श है। धर्मिक आचरण और समर्पण से व्यक्ति समाज के लिए सहयोगी बनता है।

 हिन्दू धर्म न सिर्फ एक धर्म है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक अनुभव का प्रतीक है, जो दिल को छूता है और सबको एक साथ जोड़ता है।


 Inside the Hindu mall.


एक मित्र ने मुझसे कहा- वैदिक काल से लेकर अब तक तुम्हारे हिन्दू धर्म के अंदर इतने सारे परिवर्तन हो चुके हैं कि अब ये पता करना लगभग असंभव है कि इसका मूल स्वरूप क्या रहा होगा। आरंभिक और मूल शिक्षाऐं क्या रही होंगी। 

इसलिए तुम ये मान लो कि तुम्हारे धर्म के अंदर इतनी तब्दीली आ चुकी है कि अब उसमें कुछ भी ऐसा नहीं खोजा जा सकता जो शुरू से लेकर आज तक वही है। उसने फिर व्यंग्य के लहजे में कहा- मुझे तो लगता है कि तुम लोग खुद ही कंफ्यूज हो गये होगे कि क्या मान रहे हैं और क्या मानना था।

______________Read more

108 मनके की माला से ही क्यों करना चाहिए??

108 में से 107 का वर्णन।।


परसों बात की थी कि पहनने वाली माला कितने भी मनके की हो फर्क नहीं पड़ता, जपने वाली 108 मनके की ही होनी चाहिए। ये भी बताया था कि अंगूठे के टॉप भाग में आज्ञाचक्र का पॉइंट होता है जो बार बार मनके पर रगड़ने से न जाने कब व्यक्ति की प्रज्ञा जागृत हो जाए।


तो प्रश्न यह है कि जप क्यों करना चाहिए?108 मनके की माला से ही क्यों करना चाहिए?

इसका विधान धातु, चक्र, गृह, आदि की गणना पर आधारित है। जिसका पूर्ण वर्णन आगे दिया है।

शरीर में तेरह प्रकार की #अग्नि होती हैं, सात धात्वाग्नि,पांच भूताग्नि, एक जठराग्नि जिससे भोजन पचता है पेट में।



शीर्ष महिला भारतीय गणितज्ञ ...... लीलावती

गणितज्ञ #लीलावती का नाम हममें से अधिकांश लोगों ने नहीं सुना है। उनके बारे में कहा जाता है कि वो पेड़ के पत्ते तक गिन लेती थी।   शायद ही कोई जानता हो कि आज यूरोप सहित विश्व के सैंकड़ो देश जिस गणित की पुस्तक से गणित को पढ़ा रहे हैं, उसकी रचयिता भारत की एक महान गणितज्ञ महर्षि भास्कराचार्य की पुत्री लीलावती है। आज गणितज्ञो को गणित के प्रचार और प्रसार के क्षेत्र में लीलावती #पुरूस्कार से सम्मानित किया जाता है।   आइए जानते हैं महान गणितज्ञ लीलावती के बारे में जिनके नाम से गणित को पहचाना जाता था।   दसवीं सदी की बात है, दक्षिण भारत में #भास्कराचार्य नामक गणित और ज्योतिष विद्या के एक बहुत बड़े पंडित थे। उनकी कन्या का नाम लीलावती था।   वही उनकी एकमात्र संतान थी। उन्होंने ज्यो‍तिष की गणना से जान लिया कि ‘वह विवाह के थोड़े दिनों के ही बाद विधवा हो जाएगी।’   उन्होंने बहुत कुछ सोचने के बाद ऐसा लग्न खोज निकाला, जिसमें विवाह होने पर कन्या विधवा न हो। विवाह की तिथि निश्चित हो गई। जलघड़ी से ही समय देखने का काम लिया जाता था।   एक बड़े कटोरे में छोटा-सा छेद कर पानी के घड़े में छोड़ दिया जाता था। सुराख के पानी से जब कटोरा भर जाता और पानी में डूब जाता था, तब एक घड़ी होती थी।   पर विधाता का ही सोचा होता है। लीलावती सोलह श्रृंगार किए सजकर बैठी थी, सब लोग उस शुभ लग्न की प्रतीक्षा कर रहे थे कि एक मोती लीलावती के आभूषण से टूटकर कटोरे में गिर पड़ा और सूराख बंद हो गया; शुभ लग्न बीत गया और किसी को पता तक न चला।   विवाह दूसरे लग्न पर ही करना पड़ा। लीलावती विधवा हो गई, पिता और पुत्री के धैर्य का बांध टूट गया। लीलावती अपने पिता के घर में ही रहने लगी।   पुत्री का वैधव्य-दु:ख दूर करने के लिए भास्कराचार्य ने उसे गणित पढ़ाना आरंभ किया। उसने भी गणित के अध्ययन में ही शेष जीवन की उपयोगिता समझी।   थोड़े ही दिनों में वह उक्त विषय में पूर्ण पंडिता हो गई। पाटी-गणित, बीजगणित और ज्योतिष विषय का एक ग्रंथ ‘सिद्धांतशिरोमणि’ भास्कराचार्य ने बनाया है। इसमें गणित का अधिकांश भाग लीलावती की रचना है।   पाटीगणित के अंश का नाम ही भास्कराचार्य ने अपनी कन्या को अमर कर देने के लिए ‘लीलावती’ रखा है।   भास्कराचार्य ने अपनी बेटी लीलावती को गणित सिखाने के लिए गणित के ऐसे सूत्र निकाले थे जो काव्य में होते थे। वे सूत्र कंठस्थ करना होते थे।   उसके बाद उन सूत्रों का उपयोग करके गणित के प्रश्न हल करवाए जाते थे।कंठस्थ करने के पहले भास्कराचार्य लीलावती को सरल भाषा में, धीरे-धीरे समझा देते थे।   वे बच्ची को प्यार से संबोधित करते चलते थे, “हिरन जैसे नयनों वाली प्यारी बिटिया लीलावती, ये जो सूत्र हैं…।” बेटी को पढ़ाने की इसी शैली का उपयोग करके भास्कराचार्य ने गणित का एक महान ग्रंथ लिखा, उस ग्रंथ का नाम ही उन्होंने “लीलावती” रख दिया।   आजकल गणित एक शुष्क विषय माना जाता है पर भास्कराचार्य का ग्रंथ ‘लीलावती‘ गणित को भी आनंद के साथ मनोरंजन, जिज्ञासा आदि का सम्मिश्रण करते हुए कैसे पढ़ाया जा सकता है,   इसका नमूना है। लीलावती का एक उदाहरण देखें- ‘निर्मल कमलों के एक समूह के तृतीयांश, पंचमांश तथा षष्ठमांश से क्रमश: शिव, विष्णु और सूर्य की पूजा की, चतुर्थांश से पार्वती की और शेष छ: कमलों से गुरु चरणों की पूजा की गई।   अये, बाले लीलावती, शीघ्र बता कि उस कमल समूह में कुल कितने फूल थे..?‘   उत्तर-120 कमल के फूल।   वर्ग और घन को समझाते हुए भास्कराचार्य कहते हैं ‘अये बाले,लीलावती, वर्गाकार क्षेत्र और उसका क्षेत्रफल वर्ग कहलाता है।   दो समान संख्याओं का गुणन भी वर्ग कहलाता है। इसी प्रकार तीन समान संख्याओं का गुणनफल घन है और बारह कोष्ठों और समान भुजाओं वाला ठोस भी घन है।‘   ‘मूल” शब्द संस्कृत में पेड़ या पौधे की जड़ के अर्थ में या व्यापक रूप में किसी वस्तु के कारण, उद्गम अर्थ में प्रयुक्त होता है।   इसलिए प्राचीन गणित में वर्ग मूल का अर्थ था ‘वर्ग का कारण या उद्गम अर्थात् वर्ग एक भुजा‘।   इसी प्रकार घनमूल का अर्थ भी समझा जा सकता है। वर्ग तथा घनमूल निकालने की अनेक विधियां प्रचलित थीं।   लीलावती के प्रश्नों का जबाब देने के क्रम में ही “सिद्धान्त शिरोमणि” नामक एक विशाल ग्रन्थ लिखा गया, जिसके चार भाग हैं- (1) लीलावती (2) बीजगणित (3) ग्रह गणिताध्याय और (4) गोलाध्याय।   ‘लीलावती’ में बड़े ही सरल और काव्यात्मक तरीके से गणित और खगोल शास्त्र के सूत्रों को समझाया गया है।   अकबर के दरबार के विद्वान फैजी ने सन् 1587 में “लीलावती” का #फारसी भाषा में अनुवाद किया।   अंग्रेजी में “लीलावती” का पहला अनुवाद जे. वेलर ने सन् 1716 में किया।   कुछ समय पहले तक भी भारत में कई शिक्षक गणित को दोहों में पढ़ाते थे। जैसे कि पन्द्रह का पहाड़ा…तिया पैंतालीस, चौके साठ, छक्के नब्बे… अट्ठ बीसा, नौ पैंतीसा…।   इसी तरह कैलेंडर याद करवाने का तरीका भी पद्यमय सूत्र में था, “सि अप जूनो तीस के, बाकी के इकतीस, अट्ठाईस की फरवरी चौथे सन् उनतीस!” इस तरह गणित अपने पिता से सीखने के बाद लीलावती भी एक महान गणितज्ञ एवं खगोल शास्त्री के रूप में जानी गयी।   मनुष्य के मरने पर उसकी कीर्ति ही रह जाती है अतः आज गणितज्ञो को लीलावती पुरूस्कार से सम्मानित किया जाता है।   हमारे पास बहुत कीमती इतिहास है जिसे छोड़कर हम आधुनिकता की दौड़ में विदेशों की नकल कर रहे हैं।

Read in English



गणितज्ञ #लीलावती का नाम हममें से अधिकांश लोगों ने नहीं सुना है। उनके बारे में कहा जाता है कि वो पेड़ के पत्ते तक गिन लेती थी। 


शायद ही कोई जानता हो कि आज यूरोप सहित विश्व के सैंकड़ो देश जिस गणित की पुस्तक से गणित को पढ़ा रहे हैं, उसकी रचयिता भारत की एक महान गणितज्ञ महर्षि भास्कराचार्य की पुत्री लीलावती है। आज गणितज्ञो को गणित के प्रचार और प्रसार के क्षेत्र में लीलावती #पुरूस्कार से सम्मानित किया जाता है। 

आइए जानते हैं महान गणितज्ञ लीलावती के बारे में जिनके नाम से गणित को पहचाना जाता था। 

दसवीं सदी की बात है, दक्षिण भारत में #भास्कराचार्य नामक गणित और ज्योतिष विद्या के एक बहुत बड़े पंडित थे। उनकी कन्या का नाम लीलावती था। 

वही उनकी एकमात्र संतान थी। उन्होंने ज्यो‍तिष की गणना से जान लिया कि ‘वह विवाह के थोड़े दिनों के ही बाद विधवा हो जाएगी।’ 



विश्व बैंक के अनुसार २०१८ ई⋅ में विश्व की  “कुल सेना”  थी २७६.४२.२९५ की ।  

हमारी मीडिया नहीं बताती कि संसार में सबसे बड़ी सेना भारत की है!“कुल सेना”  में वे सारे सैनिक हैं जो यु़द्धकाल में मोर्चे पर बुलाये जा सकते ह


एक महत्वपूर्ण उपकरण थी नारायणी सेना।


पितृपक्ष


हिन्दु एकता में सोशल नेटवर्क भी सहायक।


गर्भ से पिता को टोकने वाले अष्टावक्र ।।अष्टावक्र, महान विद्वान।।


महाकाल के नाम पर कई होटल, उनके संचालक मुस्लिम


क्या थे श्री कृष्ण के उत्तर! जब भीष्मपितामह ने राम और कृष्ण के अवतारों की तुलना की?A must read phrase from MAHABHARATA.


श्री कृष्ण के वस्त्रावतार का रहस्य।।


Most of the hindus are confused about which God to be worshipped. Find answer to your doubts.



हम किसी भी व्यक्ति का नाम विभीषण क्यों नहीं रखते ?


How do I balance between life and bhakti? 


 मंदिर सरकारी चंगुल से मुक्त कराने हैं?


यज्ञशाला में जाने के सात वैज्ञानिक लाभ।। 


सनातन व सिखी में कोई भेद नहीं।


सनातन-संस्कृति में अन्न और दूध की महत्ता पर बहुत बल दिया गया है !


Astonishing and unimaginable facts about Sanatana Dharma (HINDUISM)



सनातन धर्म के आदर्श पर चल कर बच्चों को हृदयवान मनुष्य बनाओ।


Why idol worship is criticized? Need to know idol worshipping.


तंत्र--एक कदम और आगे। नाभि से जुड़ा हुआ एक आत्ममुग्ध तांत्रिक।

क्या था रावण की नाभि में अमृत का रहस्य?  तंत्र- एक विज्ञान।।

जनेऊ का महत्व।।


आचार्य वात्स्यायन और शरीर विज्ञान।


तांत्रिक यानी शरीर वैज्ञानिक।।

मनुष्य के वर्तमान जन्म के ऊपर पिछले जन्म अथवा जन्मों के प्रभाव का दस्तावेज है।


Find out how our Gurukul got closed. How did Gurukul end?


तुम कौन हो? आत्म जागरूकता पर एक कहानी।

Sukh ka arth

सबसे कमजोर बल: गुरुत्वाकर्षण बल।सबसे ताकतवर बल: नाभकीय बल। शिव।। विज्ञान।।


सौगंध मुझे इस मिट्टी की मैं देश नहीं मिटने दूंगा।।


Shree ram ki kavita, kahani (chaand ko hai ram se shikayat)



The questions of narada and their answers.





श्रीमदॐ चतुर्मुखाय विद्महे, कमण्डलु धाराय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥


ॐ वेदात्मने विद्महे, हिरण्यगर्भाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥


ॐ परमेश्वर्याय विद्महे, परतत्वाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ॥ 


भागवद पुराण (विषय सूची) TABLE OF CONTENTS

श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ५]

श्रीमद भागवद पुराण स्कंध ६

Listen to podcasts 

https://anchor.fm/shrimad-bhagwad-mahapuran

https://anchor.fm/shrimad-bhagwad-mahapuran/episode


༺═──────────────═༻
श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध १]


शौनकादि ऋषियों का सूत जी से भागवत के विषय में सम्वाद। [अध्याय १]

༺═──────────────═༻
• वेद व्यास जी द्वारा भगवद गुण वर्णन।।[अध्याय २]
༺═──────────────═༻
• भगवान विष्णु के २४ अवतार।। [अध्याय ३]
༺═──────────────═༻
• व्यास मुनि का नारद में सन्तोष होना और भागवत बनाना आरम्भ करना।। [अध्याय ४]
༺═──────────────═༻
• नारद द्वारा हरि कीर्तन को श्रेस्ठ बतलाकार वेद व्यास के शोक को दूर करना।।[अध्याय ५]
༺═──────────────═༻
• देवर्षि नारद मुनि अपने पूर्व जन्म जी कथा वेद व्यास जी को कहना।। [अध्याय ६]
༺═──────────────═༻
• परीक्षित राजा के जन्म कर्म और मुक्ति की कथा।। [अध्याय ७]
༺═──────────────═༻
• अश्वत्थामा का ब्रह्म अस्त्र छोड़ना।।परीक्षित राजा के जन्म कर्म और मुक्ति की कथा।। [अध्याय ८]
༺═──────────────═༻
• युधिष्ठिर का भीष्म पितामह से सब धर्मों का सुनना।।[अध्याय ९]

༺═──────────────═༻
 श्री कृष्ण भगवान का सब कार्य करके हस्तिनापुर से चलना।।[अध्याय १०]༺═──────────────═༻
• परीक्षित के जन्म की कथा।। [अध्याय १२]
༺═──────────────═༻

• विदुर, धृतराष्ट्र, गान्धारी का हिमालय गमन से मोक्ष प्राप्ति की कथा।।[अध्याय १३]
༺═──────────────═༻

• युधिष्ठिर को कलयुग के लक्षण का आभास होना।।[अध्याय १४]

༺═──────────────═༻
• अर्जुन कृष्णा प्रेम।। श्रीकृष्ण स्तुति।।[अध्याय १५]
༺═──────────────═༻
• राजा परीक्षित का वंश वर्णन।। [अध्याय १६]
༺═──────────────═༻
• राजा परीक्षित का कलयुग को अभय देना।। कलयुग के निवास स्थान।। [अध्याय १७]
༺═──────────────═༻
• परीक्षित के श्राप की कथा ।।[अध्याय १८]

༺═──────────────═༻
_人人人人人人_अध्याय समाप्त_人人人人人人_
 श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध २]


शुकदेव जी द्वारा श्रीमद भागवत आरंभ एवं विराट रूप का वर्णन।। अध्याय १[स्कंध २]

༺═──────────────═༻
कैसे करते हैं ज्ञानीजन प्राणों का त्याग।। श्रीमद भगवद पुराण महात्मय अध्याय २[स्कंध २]
༺═──────────────═༻
शुकदेव जी द्वारा विभिन्न कामनाओं अर्थ देवो का पूजन का ज्ञान।। श्रीमद भागवद पुराण महात्मय अध्याय ३ [स्कंध २]
༺═──────────────═༻
ꕥश्रीमदभगवाद्पुराण किसने कब और किसे सुनायी।। अध्याय ४[स्कंध २]
༺═──────────────═༻
विष्णु में ही सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड है।। अध्याय ५ [स्कंध २]
༺═──────────────═༻
ꕥ श्रीमद भागवद पुराण * छठवां अध्याय * [स्कंध२]
(पुरुष की विभूति वर्णन)
दोहा-जिमि विराट हरि रूप का, अगम रूप कहलाय।
सो छठवें अध्याय में दीये भेद बताय।।

༺═──────────────═༻
बृह्मा द्वारा कर्मों के अनुसार भगवान नारायण के २४ अवतारों का वर्णन।। श्रीमद भागवद पुराण महात्मय अध्याय ७ [स्कंध २]

༺═──────────────═༻
श्रीमद भागवद पुराण महात्मय।। राजा परीक्षित-शुकदेव संवाद।। अध्याय ८ [स्कंध २]
༺═──────────────═༻
किन चार श्लोकों द्वारा हुई सम्पूर्ण भागवद पुराण की रचना।। अध्याय ९ [स्कंध २]
༺═──────────────═༻

ꕥश्री हरि नारायण का अस्तित्व।। देह का निरमाण।। अध्याय १० [स्कंध २]
༺═──────────────═༻


• श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ३]

श्रीमद भागवद पुराण *प्रथम अध्याय* [स्कंध३]
( उद्धवजी और विदुरजी का सम्बाद)

༺═──────────────═༻
• उद्धव जी द्वारा भगवान श्री कृष्ण का बल चरित्र वर्णन।।
श्रीमद भागवद पुराण अध्याय २ स्कंध ३
विदुर उध्यव संवाद 

༺═──────────────═༻

• यादव कुल का नाश का कैसे हुआ?
तृतीय स्कंध श्रीमद भागवद पुराण * तीसरा अध्याय *
श्री कृष्ण द्वारा कंस वध तथा माता पिता का उद्धार।।  

༺═──────────────═༻

• श्रीकृष्ण जी का उध्यव जी को आत्मज्ञान।।
श्रीमद भागवद पुराण* * चौथा अध्याय*स्कंध ३
विदुरजी का मैत्रेयजी के पास आना

༺═──────────────═༻

• कृष्णा की लीलाओं का वर्णन।।
श्रीमद भागवद पुराण पाँचवाँ अध्याय [स्कंध ३]
मैत्रैय जी द्वारा भगवान लीलाओं का वर्णन


༺═──────────────═༻
• विराट अवतार की सृष्टि का वर्णन।।
श्रीमद भागवद पुराण अध्याय ६ [स्कंध ३]

༺═──────────────═༻

• मैत्रैय जी द्वारा विद्वान् विदुर जी को आत्मज्ञान देना।
श्रीमद भागवद पुराण अध्याय ७ [स्कंध ३]

༺═──────────────═༻

 ब्रह्मा की उत्पत्ति। श्री हरि विष्णु द्वारा दर्शन देना।।
श्रीमद भगवद पुराण अध्याय ८ [स्कंध ३]

༺═──────────────═༻
• बृम्हा जी द्वारा भगवान विष्णु का हृदय मर्म स्तवन।।
श्रीमद भागवद पुराण अध्याय ९ [स्कंध३]
(बृम्हा जी द्वारा भगवान का स्तवन)

༺═──────────────═༻

• सर्ग-विसर्ग द्वारा सृष्टि निर्माण एवं व्याख्या।।
श्रीमद भागवद पुराण अध्याय १० [स्कंध३]
सर्ग की व्याख्या

༺═──────────────═༻

 युग, काल एवं घड़ी, मुहूर्त, आदि की व्याख्या।।
श्रीमद भागवद पुराण अध्याय ११ [स्कंध ३]
(मनवन्तर आदि के समय का परमाण वर्णन)

༺═──────────────═༻
• कैसे हुई गायत्री मंत्र की उत्त्पत्ति।।
श्रीमद भगवदपुराण अध्याय१२ [स्कंध ३]

༺═──────────────═༻

• श्रीमद भागवदपुराण* तेरहवाँ अध्याय * [स्कंध३]
(भगवान का बाराह अवतार वर्णन)

༺═──────────────═༻
• किस कारण हुआ भक्त प्रह्लाद का असुर कुल में जनम?
श्रीमद भागवद पुराण चौदहवाँ अध्याय [स्कंध ३]
(दिति के गर्भ की उत्पत्ति का वर्णन)

༺═──────────────═༻
• सनकादिक मुनियों द्वारा जय विजय के श्राप की कथा एवं उधार।
श्रीमद भागवद पुराण पंद्रहवाँ अध्याय [स्कंध ३]
(भगवान विष्णु के दो पार्षदों को ब्राम्हण द्वारा श्राप देना)


༺═──────────────═༻
• हिरण्यकशिपु हिरनक्ष्य की जनम कथा [भाग २]
श्रीमद भागवद पुराण सोलहवां अध्याय [स्कंध ३]
(जय विजय का वेकुँठ से अधः पतन) 
༺═──────────────═༻

• हिरण्याक्ष को युध्द दान देना।
श्रीमद भागवद पुराण * सत्रहवाँ अध्याय * [स्कंध३]
हिरण्यकश्यप असुर द्वारा दिग्विजय करना।


༺═──────────────═༻
• भगवान विष्णु का हिरण्यक्ष को युध्ददान।
श्रीमद भागवद पुराण *अठारहवाँ अध्याय* [स्कंध३]


༺═──────────────═༻
• सृष्टि विस्तर अर्थ ब्रह्मा जी द्वारा किये गये कर्म एवं देह त्याग।
श्रीमद भागवद पुराण बीसवां अध्याय[स्कंध ३]

༺═──────────────═༻

• श्रीमद भगवद पुराण ईक्कीसवाँ अध्याय [स्कंध ३]। विष्णुसार तीर्थ।
शतरुपा और स्वयंभुव मनु द्वारा सृष्टि उत्पत्ति
 कर्दम ऋषि का देवहूति के साथ विवाह

༺═──────────────═༻

• राजा मनु का पुर्ण चरित्र व वंश वर्णन। मनु पुत्री का कदर्म ऋषि संग विवाह।।
श्रीमद भागवद पुराण बाईसवां अध्याय [स्कंध३]
देवहूति का कदमजी के साथ विवाह होना

༺═──────────────═༻
• श्रीमद भागवद पुराण तेईसवाँ अध्याय [सकंध ३]
• कर्दम की देवहूति के साथ विमान में रति लीला


༺═──────────────═༻

• श्रीमद भागवद पुराण चौबीसवाँ अध्याय[स्कंध ३]
कपिल देव जी का देवहूति के गर्भ से जन्म लेना


༺═──────────────═༻


༺═──────────────═༻
༺═──────────────═༻


श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ४]

श्रीमद भागवद पुराण अध्याय १[स्कंध ४] प्रजा की उत्त्पत्ति।।
दो-मनु कन्याओं से हुआ, जैसे जग विस्तार।
सो पहले अध्याय में वरणों चरित अपार ॥
प्रियव्रत की जनम कथा।।
यज्ञ भगवान और माता लक्ष्मी का वंश वर्णन।।
सप्त ऋषि के नाम।।
कौन है सूत जी? सूत जी का जन्म। 

श्रीमद भागवद पुराण दूसरा अध्याय[स्कंध४]
दोहा-जैसे शिव से दक्ष की, भयो भयानक द्वेष।
सो द्वितीय अध्याय में वर्णन करें विशेष ।। 
क्यू लगते है शिव के भक्त भस्म।। शिवभक्तो को श्राप।।
क्यूँ दक्ष प्रजापति ने देवों के देव महादेव को यज्ञ में नही बुलाया।।









श्रीमद भागवद पुराण सातवां अध्याय[स्कंध ४]
(दक्ष का यज्ञ विष्णु द्वारा सम्पादन)
दोा-जैसे दिया विष्णु ने दक्ष यज्ञ करवाई।
सो सप्तम अध्याय में वर्णी कथा बनाय।।

श्रीमद भागवद पुराण*आठवां अध्याय* [स्कंध४ (पार्वती जी के रूप में सती का जन्म लेना तथा शिव से विवाह होना) दो.-पार्वती कहै सती ने ली जिमि अवतार।
सो अष्टम अध्याय में वर्णित कथा उचार ।।
श्रीमद भगवद पुराण नवां अध्याय [स्कंध४]
(ध्रुव चित्र)
दोहा-हरि भक्त ध्रुव ने करी जिस विधि हृदय लगाय।
सो नोवें अध्याय में दीनी कथा सुनाय ॥

श्रीमद भागवद पुराण दसवां अध्याय [स्कंध ४](ध्रुव को हरि दर्शन होना तथा अपने राज्य को प्राप्त होनादो -हरि दर्शन से ध्रुव लियो, जैसे शुभ वरदानसौ दसवें अध्याय में, कीनी कथा व्खान।।

श्रीमद भागवद पुराण ग्यारहवाँ अध्याय [स्कंध ४]
(ध्रुव का राज्य त्याग और तप को जाना)
दोहा-ग्यारहवें अध्याय में ध्रुव ने जतन बनाय।
राज्य दिया निज पुत्र को, वन में पहुँचे जाय ।।
श्रीमद भागवद पुराण बारहवां अध्याय[स्कंध ४]
(ध्रुव जी का विष्णु धाम जाना)
दो०-जिमि तप बल ध्रुव ने कियो विष्णु धाम को जाय।
बारहवें अध्याय में कथा कही मन लाय ।।
श्रीमद भागवद पुराण * तेरहवां अध्याय * स्कंध[४]
श्रीमद भागवद पुराण  अध्याय १३ स्कंध[४]। राजा पृथू का जनम।।
दो: ध्रुव नृप के वंशज भये,अंग नाम भूपाल।
तेरहवें अध्याय में,कहें उन्ही का हाल।
श्रीमद भगवद पुराण चौदहवाँ अध्याय[स्कंध४]
(वेणु का राज्याभिषेक )
दोहा- अंग सुमन जिमि वेनु को, राज्य मिला ज्यों आय।
चौदहवें अध्याय में, दिया वृतांत वताय ।
श्रीमद भागवद पुराण पन्द्रहवां अध्याय [स्कंध ४]
(पृथु का जन्म एवं राज्याभिषेक )
दो०-वेणु वन्श हित भुज मथी, मिलि जुलि सब मुनिराज।
पृथु प्रगटित तासों भये, हर्षित भयो समाज।।
श्रीमद भागवद पुराण * सोलहवां अध्याय *[स्कंध४]
(पृथु का सूत गण द्वारा सतवन)
दोहा- कीयौ सूत गण ने सभी, पृथु की सुयश बखान। 
सोलहवें अध्याय में, सो सब कियो निदान।। 
श्रीमद भागवद पुराण सत्रहवां अध्याय [स्कंध४]
(पृथु का पृथ्वी दोहने का उद्योग)
दोहा-जिमि पृथ्वी दोहन कियो, नृप पृथु ने उद्योग।
सत्रहवें अध्याय में वर्णन किया योग।
श्रीमद भगवद पुराण * अठारहवाँ अध्याय * [स्कंध ४]
( कामधेनु रूपी पृथ्वी का दोहना)
दोहा-जिस प्रकार पृथु ने दुही, पृथ्वी रूपी गाय। 
अष्टम दस अध्याय में, कही कथा समझाय॥
श्रीमद भागवद पुराण *उन्नीसवां अध्याय* [स्कंध ४]
क्यू राजा पृथू ने सौवाँ यज्ञ संपन्न नही किया
( पृथु का इन्द्र को मारने को उद्यत होना तब बृह्माजी द्वारा निवाग्ण करना )
दो०-अश्व हरण कियो इन्द्र ने, पृथु की यज्ञ सों आय।
सो वर्णन कीयो सकल, उन्नीसवें अध्याय ।।
श्रीमद भागवद पुराण बीसवां अध्याय [स्कंध४]
(विष्णु द्वारा पृथु को उपदेश मिलना)
दोहा-पृथु को ज्यों श्री विष्णु ने, किया सुलभ उपदेश।
सो बीसवें अध्याय में, वर्णन कियो विशेष ।।
श्रीमद भागवद पुराण अध्याय २१ [स्कंध४]
(पृथु का अनुशासन वर्णन) 
दोहा-जिमि पृथु हित प्रजा जन, कियी उपदेश महान।
इक्कीसवें अध्याय में, दियौ संपूर्ण बखान।। 
श्रीमद भगवद पुराण * बाईसवाँ अध्याय *[स्कंध४]
( सनकादिक का पृथु को उपदेश )
दोहा-सनकादिक उपदेश ज्यों, दौयों पपु को आय।
सो सब वर्णन है कियो, बाईसवें अध्याय ।
श्रीमद भागवद पुराण तेईसवां अध्याय [स्कंध४]
(पृथु का विष्णु लोक गमन)
दो-ज्यों पतिनी युत नृप पृथु, लो समाधि बन जाय।
सो सब ये वर्णन कियो, तेईसवें अध्याय ।।

श्रीमद भागवद पुराण चौबीसवां अध्याय [स्कंध ४]
। रुद्र गत कथा ।
दोहा-गये प्रचेता तप करन, पितु आज्ञा शिरधार। 
चौबीसवें अध्याय में, कथा कही युत सार।
श्रीमद भागवद पुराण * पच्चीसवां अध्याय *[स्कंध४]
(जीव का विविधि संसार वृतांत)
जिमि विधि होवे संसार यह वृतांत। 
पच्चीसवें अध्याय में वर्णी कथा सुखांत।।
श्रीमद भगवद पुराण छब्बीसवाँ अध्याय [स्कंध४]
(पुर बन के मृगयाञ्चल के स्वरूप और जागरणा वस्था कथन द्वारा संसार वर्णन )
दोहा- स्वप्न अौर जागृत समय सन्मति पावहि त्याग। 
विविधियोनि वर्णन कियो, कथा पूर्ण अनुराग ।।
श्रीमद भागवद पुराण* सत्ताईसवां अध्याय *[स्कंध४]
(पुरंजन का आत्म विस्मरण)
दो०-स्त्री के वश फंस विपत्ति, पाई ज्यों अधिकाय।
सो सब यहि वर्णन कियौ, सत्ताईस अध्याय।।
श्रीमद भागवद पुराण अध्याय २८ [स्कंध ४]
( पुरंजन का स्त्रीत्व को प्राप्त होना तथा ज्ञानोदय में सुक्ति लाभ)
दोहा-भये पुरंजन नारि तब, नारि मोह वश आय ।
सो वर्णित कीनी कथा, अट्ठाईस अध्याय ।।
एके साधे सब सधे।
सब साधे, सब जाये।।
बुद्धि।।
श्रीमद भागवद पुराण उन्तीसवां अध्याय [स्कंध४]
(उपरोक्त कथन की व्याख्या )
नारद जी द्वारा जनम से मृत्यु के उपरांत का पूर्ण ज्ञान।।
उन्तीसवें अध्याय में, समुचित किया निदान ।।
श्रीमद भागवद पुराण तीसवाँ अध्याय [चतुर्थ स्कंध]
(राजा प्राचीन वहिक पुत्रों को विष्णु भगवान का वर प्राप्त होना)
दोहा-कियो प्रचेतन तप अमित, विष्णु दियो वरदान । 
सो तीसवें अध्याय में, समुचित कियो बखान ।।
श्रीमद भागवद पुराण इकत्तीसवां अध्याय[स्कंध ४] (प्रचेताओं का चरित्र दर्शन )
दोहा- राज्य प्रचेता गण कियौ, प्रकटे दक्ष कुमार।
इकत्तिसवें अध्याय में, कही कथा सुख

༺═──────────────═༻
༺═──────────────═༻
_人人人人人人स्कंध समाप्त_人人人人人人_

श्रीमद भागवद पुराण [स्कंध ५]

श्रीमद भागवद पुराण * प्रथम अध्याय* [स्कंध५]
(प्रियव्रत चरित्र वर्णन)

दो ०- नूपति भये प्रियवृत जिमि, ज्ञान लियी जिमि पाय। 

सो वृतांत वर्णन कियौ, या पहिले अध्याय ।श्रीमद भागवद पुराण दूसरा अध्याय [स्कंध ५]
( अग्नीध्र चरित्र)
दोहा-सव अग्नीध का, भाषा करदू गाय।
या द्वितीय अध्याय में, श्रवण करी मन लाय।। 


श्रीमद भागवद पुराण * तीसरा अध्याय *[स्कंध ५] ऋषभ देव अवतार
( नाभि का चरित्र वर्णन )
दोहा-ऋषभ यज्ञ प्रकटित भये, यज्ञरूप अवार।
सो तीसरे अध्याय में, कही कथा सुख सार ।।





श्रीमद भागवद पुराण * चौथा अध्याय *[स्कंध ५] ( ऋषभ देव का चरित्र वर्णन ) 
दोहा-ऋषभ देव अवतार भये, कहूँ कथा समझाय।
या चौथे अध्याय में, कहें शुकदेव सुनाय ।।



श्रीमद भागवद पुराण * पाँचवाँ अध्याय * [स्कंध५]
( ऋषभ देवजी का उपदेश करना )
दोहा-ऋषभ देव निज जात जिमि, दई सीख सुख दाय।
मोक्ष मार्ग वर्णन कियो, या पंचम अध्याय ।।

श्रीमद भागवद पुराण * छटवां अध्याय * [स्कंध ५]
श्री ऋपमदेव जी का देह त्याग करना)
दो०-देह त्याग कियो ऋषभ, जिमि अंतिम भये छार।
सो छटवें अध्याय में, बरनी कथा उचार ।। 


श्रीमद भागवद पुराण* सातवां अध्याय *[स्कंध ५]
(भरत जी का चरित्र वर्णन )
दो० भरत राज्य जा विधि कियो। हरि सौं प्रेम बड़ाय। 
सो सप्तम अध्याय में, कही कथा दर्शाय ।।


श्रीमद भागवद पुराण *आठवां अध्याय *[स्कंध५]
(भरत को मृगत्व) 
दोहा-मृग शिशु पाल प्रेम मय प्रभुहि भक्ति विसराय॥ 
सो आठवें अध्याय में भरत मये मृग आय।।



श्रीमद भागवद पुराण * नौवां अध्याय *[स्कंध ५]
(भरत का विप्र जन्म लेना)
दोहा-या नवमे अध्याय में, भये भरत जड़ रूप।
सो उनकी सारी कथा, वर्णन करी अनूप ॥


श्रीमद भागवद पुराण * दसवां अध्याय *[स्कंध ५]
(जड़ भरत और रहूगण का संवाद)
दोहा-सेवक पकड़े जड़ भरत, दिये सुख पाल लगाय ।
सो दसवें अध्याय में, कहयौ संवाद सुनाय ।।

श्रीमद भागवद पुराण ग्यारहवां अध्याय [स्कंध ५]
(जड़ भरत का निर्मल उपदेश)
दोहा-दियो रहूगण को भरत, जिस प्रकार उपदेस।
सो ग्यारह अध्याय में, वर्णन कियौ विशेष ॥

श्रीमद भागवद पुराण बारहवां अध्याय [स्कंध ५]
(राजा रहूगण का संदेह भंजन )
दोहा - शंसय कियो अनेक विधि, रहुगण भूप अनेक।
बारहवें अध्याय में, मैंटे सहित विवेक ।।

श्रीमद भागवद पुराण ॥तेरहवां अध्याय॥ स्कंध५
(भयावटो वर्णन)
हो०-आत्म ज्ञान उपदेश जिमि' कहयो भरत समझाय।
तेरहवें अध्याय में, कथा कही दर्शाय ।।

श्रीमद भागवद पुराण चौदहवां अध्याय [स्कंध ५]
(भवावटी की प्रकृति अर्थ वर्णन)
दो०-रूपक धरि कहि जड़ भरत, राजा दियौ समझाय।
भिन्न भिन्न कर सब कहयौ, चौदहवें अध्याय ।।


श्रीमद भागवद पूराण सोलहवां अध्याय [स्कंध५]
(भुवन कोष वर्णन) इलावृत खंड
दोहा०-भुवन कोस वर्णन कियो, श्री शुकदेव सुनाय।
सुनत परीक्षित भूप जिम सोलहवें अध्याय॥


गंगा जी का विस्तार वर्णन।। भगवाद्पदी- श्री गंगा जी।
श्रीमद भगवद पुराण *सत्रहवां अध्याय*[स्कंध ५]
दोहा: कहयो गंग विस्तार सब, विधि पूर्वक दर्शाय।
संकर्षण का स्तबन कियो रुद्र हर्षाय।।


अष्टम दस अध्याय में, कीरति कही बनाय।।

श्रीमद भागवद पुराण उन्नीसवाँ अध्याय * स्कंध५
भारत वर्ष का श्रेष्टत्व वर्णन
दो: हो भारत देश महान है, कहुँ सकल प्रस्तार।
या उन्नाव अध्याय में, वर्णित कियौ विचार।।

श्रीमद भागवद पुराण इक्कीसवां अध्याय [स्कंध ५]
राशि संचार द्वारा लोक यात्रा निरूपण
दोहा-सूर्य चन्द्र की चाल से, होवे दिन और रात।
सो इक्कीस अध्याय विच, लिखी लोक की बात ।।

श्रीमद भागवद पुराण बाईसवां अध्याय [स्कंध ५](चंद्र तथा शुक्र आदि नक्षत्रों एवं ग्रहों का वर्णन)



स्कन्ध ६

प्रथम अध्याय
(अजामिल की मोक्ष वर्णन विषय)
दो०- विष्णु पार्षद आयट, लिये यम दूत दबाय | 
दुष्ट अजामिल को लियौ, प्रथम अध्याय छुड़ाय || 


श्रीमद भागवद पुराण दूसरा अध्याय [स्कंध६]
(विष्णु पार्षद कथन)
दोहा० या दूजे अध्याय में, कहीं कथा सुख सार।
नारायण को नाम ले, भयौ अनामिल पार॥



श्रीमद भागवद पुराण तीसरा अध्याय [स्कंध ६]
(वैष्णव धर्म का वर्णन)
दो. विष्णु महातम सारयम, निज दूतों को समझाय।
सो वर्णन कीनी सकल, या तृतीय अध्याय ॥

नवीन सुख सागर 
श्रीमद भागवद पुराण चौथा अध्याय [स्कंध ६]
( दक्ष द्वारा हंस गुहा के स्तवन द्वारा हरि की आराधना )
दो०-दक्ष तपस्या अति करी, करन प्रजा उत्पन्न।
सो चौथे अध्याय में कही कथा सम्पन्न॥













नवीन सुख सागर 
श्रीमद भागवद पुराण ग्यारहवाँ अध्याय [स्कंध ६]
(वृतासुर का चरित्र वर्णन)
दो००वृतासुर ने भक्तिमय, सुन्दर वरणों ज्ञान।
ग्यारहवें अध्याय में, ताकौ कियो बखान।।






असुर वृत्तासुर का देव भाव को प्राप्त होना।।
नवीन सुख सागर 
श्रीमद भागवद पुराण चौदहवाँ अध्याय [स्कंध ६]
(चित्रकेतु चरित्र वर्णन)
दो०- चिरकेतु के चरित्र को वर्णन कियौ सुनाये।
भाख्यो शुक संपूर्ण यश चौदहवे अध्यायः॥



नवीन सुख सागर
श्रीमद भागवद पुराण पन्द्रहवाँ अध्याय [स्कंध ६]
(चित्रकेतु को नारद तथा अंगिरा ऋषि द्वारा शोक मुक्त करना)
दो० नारद और ऋषि अंगिरा, चित्रकेतु ढ़िग आय।
शौक दूर कीयो सकल कहयौ ज्ञान दरसाय॥









स्कंध समाप्त 🙏🙏🙏

Shrimad Bhagwad Mahapuran [Skandh 7]



जय विजय के तीन जनम एवं मोक्ष प्राप्ति। श्रीमद भगवद पुराण प्रथम अध्याय-सातवां स्कन्ध प्रारम्भ
दो०-कुल पन्द्रह अध्याय हैं, या सप्तम स्कंध ।
वर्णन श्री शुकदेवजी उत्तम सकल निबन्ध ।।
हिरण्यकश्यप के वंश की, हाल कहूँ समय ।

▲───────◇◆◇───────▲
▲───────◇◆◇───────▲


▲───────◇◆◇───────▲


▲───────◇◆◇───────▲

▲───────◇◆◇───────▲



▲───────◇◆◇───────▲


▲───────◇◆◇───────▲


▲───────◇◆◇───────▲


▲───────◇◆◇───────▲



▲───────◇◆◇───────▲




▲───────◇◆◇───────▲


▲───────◇◆◇───────▲



▲───────◇◆◇───────▲



▲───────◇◆◇───────▲





▲───────◇◆◇───────▲


स्कंध समाप्त 🙏🙏🙏




▲───────◇◆◇───────▲






नवीन सुख सागर

श्रीमद भागवद पुराण दूसरा अध्याय [स्कंध८]

गजेन्द्र का उपाख्यान

दोहा- अध्याय में कही कथा गजेन्द्र उचार।

तामें प्रथम द्वितीय में जल क्रीड़ा को सार ।

गज और ग्राह की कथा।। भाग १ (सुख सागर कथा)


▲───────◇◆◇───────▲


नवीन सुख सागर कथा

श्रीमद भागवद पुराण  तीसरा अध्याय [स्कंध८]

(गजेन्द्र मोक्ष) 

गज और ग्राह की कथा - भाग २ (सुख सागर कथा)गजेन्द्र मोक्ष।। 


▲───────◇◆◇───────▲

नवीन सुख सागर कथा

श्रीमद्भागवद पुराण चौथा अध्याय स्कंध ८

(गजेन्द्र का स्वर्ग जाना) 

दो० अब चतुर्थ में कहयौ ग्राह भयो गंधर्व।

गज हर पार्षद जस भयो सो भाष्यों है सब || 

▲───────◇◆◇───────▲

श्रीमद भागवद पुराण पाँचवाँ अध्याय [स्कंध ८ ] (ब्रम्हाजी द्वारा स्तवन)


▲───────◇◆◇───────▲



नवीन सुख सागर कथा।।

श्रीमद भागवद पुराण छठवाँ अध्याय [ स्कंध ८]

(अमृतोत्पादन के लिये देवासुर का उद्योग) समुद्र मंथन भाग १।।


▲───────◇◆◇───────▲



श्रीमद भागवद पुराण सातवाँ अध्याय स्कंध ८

समुद्र मंथन से कालकूट की उत्पत्ति 


▲───────◇◆◇───────▲



▲───────◇◆◇───────▲



सुख सागर कथा।। समुद्र मंथन भाग ४।।मोहिनी अवतार।।

श्रीमद भागवद पुराण नवां अध्याय स्कंध ८

भवगान का मोहिनी रूप धारण कर दैत्यों से अमृत कलश लेना।।

▲───────◇◆◇───────▲



सुख सागर कथा।। समुद्र मंथन भाग ५ (देवासुर संग्राम)

श्रीमद् भागवद पुराण * दसवां अध्याय * स्कंध ८( देवासुर संग्राम)

दोहा ॰ दैत्य सुरन सौ जब भयो भीषण युद्ध अपार।

सो दसवें में है कथा जस प्रकटे करतार || 


▲───────◇◆◇───────▲

श्रीमद भागवद पुराण अध्याय ग्यारहवाँ स्कंध ८ ( देवासुर की समर-समप्ति) देवासुर संग्राम 

दोहा- अब ग्यारह में कही, दैत्यों का संहार। 

भृगु नारद मेक्यो तभी कीन जीब संचार।।

▲───────◇◆◇───────▲

श्रीमद्भागवद पुराण  बारहवाँ अध्याय स्कंध 8

(मोहनी रूप देख महादेव की मोह प्राप्ति)

दोहा-रूप मोहनी दर्शहि इच्छा धारि महेश।

बारह में वर्णन कियो विष्णु दीन्ह उपदेश।।


▲───────◇◆◇───────▲


नवीन सुख सागर

श्रीमद्भागवद पुराण  तेरहवाँ अध्याय स्कंध ८।।वैबस्वतादि मन्वन्तर वर्णन।।

दोहा-तेरहवें में वैवस्वत मनु सप्तम राजत जोय।

भाषे जौन भविष्य जो कथा कही सब सोय।।


▲───────◇◆◇───────▲

श्रीमद्भागवद पुराण चौदहवां अध्याय स्कंध ८

(मन्वादि का पृथक पृथक कर्मादि वर्णन)

दो० चौदह में प्रभु आज्ञा लहि मनु कीन्हे कर्म।

सो अब वर्णन उपदेशमय भांति-भांति  के मर्म || 


▲───────◇◆◇───────▲


नवीन सुख सागर

श्रीमद भागवद पुराण  पन्द्रहवां अध्याय स्कंध ८ 

( बलि द्वारा स्वर्ग विजय )

दो०-अब बलि को वर्णन कथा भाखी नो अध्याय |

यज्ञ विश्वजित एक में बलि को बैभव लाय ||१५| 


▲───────◇◆◇───────▲

श्रीमद भगवद पुराण सोलहवाँ अध्याय  [स्कंध ८]

 कश्यप द्वारा पयोव्रत कथन )पयोव्रत कथन :  सब यज्ञ, सब ब्रतों और सब तपों का सार। 

दो०-सोलह में निज सुतन लखि अदिति महा दुख पाय। 

जैसे कश्यप कह गये निज समाधि विसराय।। 

▲───────◇◆◇───────▲


श्रीमद भागवद पुराण सत्रहवां अध्याय [स्कंध ८]
(अदिति के गर्भ से भगवान का जन्म )सुख सागर  अध्याय 17 स्कंध 8 अदिति के गर्भ से भगवान का जन्म वामन अवतार  भाग 1
दोहा-पयोव्रत अदिति कीन्ह जब भये कार्य सब पूर्ण।
सत्रहवें में कथा कही विमल सम्पूर्ण |। १७। | 


▲───────◇◆◇───────▲


श्रीमद भागवद पुराण* अठारहवाँ अध्याय *[स्कंध ८] 

सुख सागर  अध्याय 18 स्कंध 8 अदिति के गर्भ से भगवान का जन्म वामन अवतार  भाग 2(बलि के यज्ञ में भगवान का आगमन)विजया द्वादशी।।

दोहा-अठारहवें अध्याय में प्रकटे वामन आय।

दैत्य भूप बयि के यहां यांच्यो वर हर्षाये || 

▲───────◇◆◇───────▲


श्रीमद भागवद पुराण अध्याय १९ [स्कंध ८]

( वामन द्वारा बलि से तीन पैर भूमि की प्रार्थना ) 

दो० तीन पैर की याचना वामन बलि से कीन।

सो उन्नीसव है कही धलि की कथा नवीन ॥

▲───────◇◆◇───────▲

श्रीमद भागवद पुराण बीसवां अध्याय स्कंध [८]( विश्व-रूप दर्शन )सुख सागर अध्याय 20 [स्कंध ८]  ( वामन द्वारा बलि से तीन पैर भूमि की प्रार्थना) विश्व-रूप दर्शन।। वामन अवतार  भाग 4

दोहा-वामन छलहू जानिकै दान हर्षि नृप दीन। 

सो बिसहें वर्णन कियो बाढ़े विष्णु प्रवीन।।

▲───────◇◆◇───────▲


श्रीमद  भागवद  पुराण इक्कीसवाँ अध्याय [स्कंध८]

( विष्णु द्वारा बलि का बन्धन )वामन अवतार  भाग 5

दोहा- इक इस में पग तृतीय हित हरि बांधे बलिराज।

बलि को महिमा देन हित वामन कोन्हें काज ।। 

▲───────◇◆◇───────▲


श्रीमद भागवद  पुराण अध्याय २२ स्कंध ८ [भगवान का द्वारपालना स्वीकार]

दोहा-बाईसवें अध्याय में बलि भेज्यो पाताल।

आप द्वार रक्षक भये दीनानाथ दयाल | ।


▲───────◇◆◇───────▲

श्रीमद  भागवद  पुराण तेईसवां अध्याय [स्कंध ८]

( बलि का सुतल गमन )

दो०- तेईस में प्रहलाद युतसुतल बसे बलि जाय। 

लहि आनन्द श्रीविष्णुयुत स्वर्ग गये सुरराय ।२। 


▲───────◇◆◇───────▲

▲───────◇◆◇───────▲

We are working hard to complete Digitizing of Shrimad Bhagwad Mahapuran (sukh sagar). 


Still under process...........

  • Jai shree Krishna 


  • Jai shri Hari

  • Aumॐ




Post a Comment

أحدث أقدم